भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपिका केशरी |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=दीपिका केशरी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
औरतें चावल साफ करते हुए
इतनी ध्यान मग्न होती हैं कि लगता है जैसे
अपने ईश्वर के प्रार्थना में डूबे हुए
अपने ईश्वर से कह रही हो
कि सुनो ईश्वर
तुम्हारे हिस्से के कंकड़ मैं चुन रही हूँ
तुम मेरे हिस्से के कंकड़ चुन लेना,
तुम्हारे होने में से किसी और का होना
फटक कर निकाल रही हूँ
अब जहाँ तुम हो वहाँ बस तुम ही हो !
इतना कहकर साफ चावल का एक दूसरा ढ़ेर बनाती हैं औरतें,
वहीं दूसरी तरफ
ईश्वर मंद मंद मुस्कुराता हुआ सोचता है
कितनी सरल हो तुम
चावल से कंकड़ ऐसे निकाल रही हो
जैसे
जीवन से पीङा चुन कर बाहर निकाल रही हो
कितनी सरल हो तुम
मेरे होने को बनाऐ रखने के लिए कितना जतन करती हो
ये सोचता हुआ ईश्वर
पसीज कर पसीना बन
चावल साफ कर रही औरतों के माथे से आँखों में टपक आता है

आँखें खारी हो जाती है तब ईश्वर का होना
औरत अपने आंचल से पोछ लेती है !
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
2,956
edits