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<poem>
सारे वृक्ष रात को उन प्रेमिकाओं की सांस बन रहे थे
जो अपने मकानों में बंद रहती हैं.
लगा ऐसा
कि यह उन वृक्षों के पत्तों की बन्द मुट्ठियाँ हैं
जो धीरे-धीरे खुल रही हैं.
</poem>
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