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<poem>
मैत्रेय

तुम अपनी स्फुट परिस्थितयों के साथ आना.
मेरी सभ्यता का अंश प्रकाशित हो चुका है.
तुम्हारे वास्तविक एकाकीपन में
मैंने रोशनी की एक लकीर देखी है.

तुम्हारे पाँव
मेरी बोली समझते हैं.
</poem>
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