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14:21, 16 अक्टूबर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार= विल्हेम इकेलुन्द
|संग्रह=
}}
<Poem>
किनारों पर उजाड़ पहाड़ियां
उदास रात को कर देती हैं और काला,
धूसर और घटाटोप सांझ से
निकलता है एक कालीन चमकीले रंगों वाला.
एक रूदन, एक मौन सिसकी,
जैसे स्पंदन हो समंदर में -
बहुत थके हुए और लड़खड़ाते हुए है गिरता
वह चुपचाप अपनी कब्र में.
'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
</poem>