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आँसू / एल्सा ग्रावे

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मेरे आँसू
नहीं बुझाते कोई आग,
और मेरी आग
नहीं सुखाती कोई आँसू.

कभी नहीं सूखते मेरे आँसू,
वे बहते हैं,
वे बहते ही जाते हैं,
नहरों, नदियों और महासागरों तक,
और तब भी होते हैं
बेहतर नहीं.
फिर भी मैं एक साथ रो सकती हूँ एक विशाल सागर!
लाल आँखें
पीले पड़ गए गाल
रात और दिन आँसुओं से -

क्या दे रहे हैं संकेत कि
दुनिया का सारा पानी
सकल बारिश आकाश की
है सबके विरुद्ध जिस लिए इंसान अक्सर रोता है और रोता जाता है?


'''(मूल स्वीडिश से अनुवाद : अनुपमा पाठक)'''
</poem>
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