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Kavita Kosh से
कठिन प्रेम कविताएँ,
मेरी जानिब ख़ालिस उर्दू की,
थक कर सिमट गया मुझमेमुझमें
पोर-पोर दुखता मटमैला दिन,
सुख सा निखरी-बिखरी मुझमे मुझमें 'तुम' गमकती 'संदल' हो गयी
साँझ ढल कर कंटीली कँटीली हुई
मैं खुरदुरा घवाहिल ढहा
फाहा-फाहा, रोआं-रोआं
मैं उभरा जब भी, पश्ताचाप संताप भाप सा
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