भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
आहत दर्प
जा छुपता है
प्रशस्ति की कन्दराओं मेमें
तेक नहीं छोड़ती हठ
निर्वसन करता हुआ
शिराओं से मुख तक
रक्त के सारे माध्यम !!.
</poem>