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<poem>
कई बार ऐसा होता है
हम निहायत अकेले होते हैं
रिश्तों की ठसाठस भीड़ में

उम्मीद का बैरियर
एक झटके से टूटता है
और हम अपने अंदर
भगदड़ में कुचले जाते हैं

कई बार ऐसा होता है
हम वो कह देना चाहते हैं
जिसे कह देना
संस्कार की घुट्टी पर
नीला फ़ेन ला देता है
और हम बेहद सेंसिबल हो जाते हैं
हमारे होने की हद लिए

कई बार ऐसा होता है
जब हम बहुत अशांत होते हैं
स्क्रोल करते हैं
मोबाइल की पूरी कांटैक्ट लिस्ट
और किसी एक नंबर को मिला पाना
तय नहीं कर पाते
क्यूँकि हम पूरे मिले होते हैं
अपने ही, हर अधूरे द्वन्द से

कई बार ऐसा होता है
हम कोई मखौल नहीं बनाते
तमाशाई दुनिया का
और उसकी हर खिल्ली पर
मुस्कुरा देते हैं
दम घुटते माहौल में
क्यूँकि बने रहना वहाँ बेहद ज़रूरी है
जहाँ के हम कभी, ज़रूरी नहीं होते

कई बार ऐसा होता है.

</poem>
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