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तब भी सृजन की कोख के नाम पर कविता पाठ कर रहे थे हम
स्त्रियाँ कविता नही सुनना चाहतीचाहतीं
स्त्रियाँ कविता लिखना चाहती हैं
स्त्रियाँ मुखौटे पहनना नही चाहती...चाहतीं
स्त्रियाँ मुखौटे उतारना चाहती हैं
 पुरुषों के अंदर भी योनि का दाक्षागृह निसृत करना चाहती है स्त्री उसी छल और मुखौटे के साथ.
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