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{{KKRachna
|रचनाकार=सुरेश चंद्रा
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>
उस सदी से
इस सदी तक
सभ्यता हमारा प्रिय विषय रहा है
आप इसे उत्तरदायित्व का बोध कह सकते हैं
हम मनुष्य को नित समझने के लिए
मनुष्यता पर नित प्रयोग कर रहे हैं
आप इसे मानवता पर शोध कह सकते हैं
समाज गढ़ते हुए, हम भयभीत हैं
अपेक्षाओं और आशंकाओं के मध्य
स्वयं को आवश्यक प्रतीत होने की लालसा लिए
आप इसे निजता (स्वार्थ नहीं) का अनुरोध कह सकते हैं
सहूलियत के सरोकार से, हम लिपियों को बटोर कर
निचोड़ लेते हैं नए पृष्ठ, नयी संशोधित प्रतिलिपियाँ
आगत सदी मे सभ्यता के विषय को एक असंयमित नयी गति सौंप कर
आप इसे स्वायत्तता का प्रतिरोध कह सकते हैं
</poem>
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उस सदी से
इस सदी तक
सभ्यता हमारा प्रिय विषय रहा है
आप इसे उत्तरदायित्व का बोध कह सकते हैं
हम मनुष्य को नित समझने के लिए
मनुष्यता पर नित प्रयोग कर रहे हैं
आप इसे मानवता पर शोध कह सकते हैं
समाज गढ़ते हुए, हम भयभीत हैं
अपेक्षाओं और आशंकाओं के मध्य
स्वयं को आवश्यक प्रतीत होने की लालसा लिए
आप इसे निजता (स्वार्थ नहीं) का अनुरोध कह सकते हैं
सहूलियत के सरोकार से, हम लिपियों को बटोर कर
निचोड़ लेते हैं नए पृष्ठ, नयी संशोधित प्रतिलिपियाँ
आगत सदी मे सभ्यता के विषय को एक असंयमित नयी गति सौंप कर
आप इसे स्वायत्तता का प्रतिरोध कह सकते हैं
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