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|रचनाकार=राबर्ट ब्लाई
|संग्रह=
}}
<Poem>
जब हम चहलकदमी करते हैं किसी जमी हुई झील पर,
हम वहां रखते हैं अपने कदम जहां वे पहले कभी नहीं पड़े थे.
अछूती सतह पर चहलकदमी करते हैं हम. मगर होते हैं बेचैन भी.
कौन होता है वहां नीचे, सिवाय हमारे पुराने गुरुजनों के ?
पानी जो कभी संभाल नहीं पाता था इंसान का वजन
--तब हम विद्यार्थी हुआ करते थे-- अब टिकाए रहता है हमारे पैरों को,
और कोई मील भर फैला होता है हमारे सामने.
हमारे नीचे होते हैं गुरुजन, और खामोशी होती है हमारे चारों ओर.
'''अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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}}
<Poem>
जब हम चहलकदमी करते हैं किसी जमी हुई झील पर,
हम वहां रखते हैं अपने कदम जहां वे पहले कभी नहीं पड़े थे.
अछूती सतह पर चहलकदमी करते हैं हम. मगर होते हैं बेचैन भी.
कौन होता है वहां नीचे, सिवाय हमारे पुराने गुरुजनों के ?
पानी जो कभी संभाल नहीं पाता था इंसान का वजन
--तब हम विद्यार्थी हुआ करते थे-- अब टिकाए रहता है हमारे पैरों को,
और कोई मील भर फैला होता है हमारे सामने.
हमारे नीचे होते हैं गुरुजन, और खामोशी होती है हमारे चारों ओर.
'''अनुवाद : मनोज पटेल'''
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