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गति-लय / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
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<poem>
सदियाँ कुटुंब में जीती हैं
अब्दों का संगीत
अंतरित होता रहता है
संस्कृति है
और नहीं
परंपरा नहीं है
और है
प्रयोग छंदग है
प्रकलक है
अंतिम परिणति की ओर
</poem>
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