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संगाहन / रामनरेश पाठक

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|संग्रह=मैं अथर्व हूँ / रामनरेश पाठक
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<poem>
एक कमरे में
एक सुबह, एक दोपहर और एक साँझ सोयी है

सुबह की पलकों पर है भविष्य
दोपहर की देह पर वर्तमान
और साँझ के समवेत पर अतीत

काल के सात सुर जागते हैं-
इतिहास रचना करता है
दिक् है विक्षुब्ध

मैं मन्त्रों की आत्मा में
अस्तित्व की सार्थकता खोजने को
धीरे-धीरे उतर रहा हूँ
</poem>
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