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लड़ते हुए सिपाही का गीत बनो रेहारना है मौत, तुम जीत बनो रे...
फूलों से खिलना सीखो, पंछी पँछी से उड़नापेड़ों की छाँव बनके , धरती से जुड़नापर्वत से सीखो, कैसे चोटी पर पे चढ़नागेहूँ के दानों-सी प्रीत बनो रे...
जब बैठे-बैठे आँखें भर आएँ दुख से
फिर सोचना, दिन कैसे बीतेंगे सुख से
दुख की लकीरें मिट जाएँगी मुख से
सूरज-सा उगने की रीत बनो रे...
माथे पर पे छलके भाई! जब भी पसीनाइक पल हवाओं के भी होठों ओठों पर जीनातब देखना रे ! कैसे फूलेगा सीनासीने में धड़के जो, संगीत बनो रे... पाप का घड़ा तो आख़िर फूटेगा भाईपापी किस-किस से फिर छूटेगा भाईकोई लुटेरा कब तक लूटेगा भाईख़ून-पसीने के मीत बनो रे ...
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