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केवल तुम / रामनरेश पाठक

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गढ़े गए थे तुम
संसृति-विस्तार की कृष्ण चुडाओं चुड़ाओं को छूकर
कोमल पाँव आगे बढ़े थे
सारे सपने रेखाओं में सिमट गए थे
सारे रतन पाँवों में सिमट गए थे
प्रश्नों प्रश्न उगे थे
अंधकार के फूलों के लिए
विरागी यौवन के मधु के लिए
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