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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=कुमार रवींद्र|अनुवादक=|संग्रह=आदिम राग सुहाग का / कुमार रवींद्र}}{{KKCatGeet}}<poem>सुनो सजनीरात-बीते हम न होंगे पर सुबह होगी कोई पंछी आम्रवन से तुम्हें टेरेगाउसे दुलराना जल रहा है यह दिया जो द्वार पर नदी में इसको सिराना पाँव छूनाघाट पर तुमको मिले यदि कोई जोगी पुण्य वह हमको मिलेगा, सच धूप होंगे हम हाँ, तुम्हारे पास ही होंगे जब तुम्हारी आँख होगी नम हम छुएँगे तुम्हें तुम हँसनावह छुवन तो बेवज़ह होगी बनोगी तुम भी सुबह की ओस ऐसे ही किसी दिन कल देह हम होंगे नहीं आकाश होंगे या कि बहता जल और साँसेंये नहीं होंगी जो रहीं ता-उम्र हैं ढोंगी </poem>
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