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{{KKRachna
|रचनाकार=नाज़िम हिक़मत
|अनुवादक=मनोज पटेल
|संग्रह=
}}
<poem>
मेरी पत्नी,
जान मेरी ज़िंदगी ज़िन्दगी की,
मेरी पिराए,
मैं सोच रहा हूँ मौत के बारे में,
यानी मेरी धमनियां धमनियाँ
सख्त हो रही हैं...
किसी दिन
जब बर्फ बर्फ़ पड़ रही होगी,
या किसी रात
या
और कहाँ ?
कैसे
और कौन सी कौनसी होगी वह आखिरी आख़िरी आवाज़ जो वह मरने वाला सुनेगा,कौन सा आखिरी कौनसा आख़िरी रंग देखेगा वह,
यहाँ पीछे छूट जाने वाले की पहली हरकत क्या होगी,
पहला लफ्ज़,
पहला आहार ?
क्या पता हम मरें एक-दूसरे से काफी दूर.काफ़ी दूर।खबर ख़बर चीखती चीख़ती हुई आएगी,या बस , इशारा करके चला जाएगा कोई
यहाँ पीछे छूट गए को अकेला छोड़कर...
और पीछे छूट गया वह अकेला
गुम ग़ुम हो जाएगा भीड़ में.में।मेरा मतलब है, यही ज़िंदगी ज़िन्दगी है...और यही सारी संभावनाएंसम्भावनाएँ, 1900 के कौन से कौनसे साल,
किस महीने,
किस दिन,
मेरी पत्नी,
जान मेरी ज़िंदगी ज़िन्दगी की,
मेरी पिराए,
मैं सोच रहा हूँ मौत के बारे में,
अपनी जिंदगियों जिन्दगियों के बीतते जाने के बारे में.
मैं उदास हूँ,
शांतशान्त,और गौरवान्वित.गौरवान्वित।
जो भी पहले मरता है,
चाहे जैसे
हमने प्रेम किया एक-दूजे से
और प्रेम किया जनता के महानतम उद्देश्य से
-- हम लड़े इसके लिए --
हम कह सकते हैं
कि हम ज़िंदा ज़िन्दा रहे सचमुच. सचमुच।
'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : मनोज पटेल'''
</poem>
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