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'''(प्राक्कथनप्राक्कथन)'''
कविताओं से भरी खोपड़ी
तुम सबकी सेहत के लिए
जो मुझे पसन्द रहे और आज भी हैं
देव प्रतिमाओं की तरह सजाए रखा है मैंने ।
अक्सर सोचता हूँ मैं --— अच्छा अच्छा नहीं होगा क्या
अपने अन्त में लगाना गोलियों का पूर्ण विराम ।
कुछ भी हो
शाही शादियों से सजाओ
इस रात को,
ख़ुशियों से भरो जिस्मों जिस्मों को
भूले न कोई यह रात,
आज मैं बजाऊँगा बाँसुरी --
पाँवों के पंखों से लाँघता कोसों लम्बॊ सड़कें
कहाँ जाऊँगा मैं यह नरक छोड़ कर ।
किस दिव्य दिव्य हॉफ़्मान कीअभिशप्त अभिशप्त तुम आईं कल्पनाओं कल्पनाओं में ?
तंग पड़ गई हैं सड़कें
ख़ुशियों के तूफ़ानों को,
नज़र नहीं आता अन्त कहीं
सजे-धजे लोगों के त्योहार त्योहार का ।
सोचने लगता हूँ जब
बीमार और तपे हुए ख़ून के लोंदों की तरह
टपकने लगते हैं विचार खोपड़ी से ।
किसी का भी ढूँढ नहीं पाता साथ
गिर पड़ूँगा इसी पल धड़ाम से पीठ के बल,
फोड़ दूँगा सिर निवा की चट्टानों पर ।
हाँ, मैंने ही नकारा था ख़ुदा को,
कहा था -- — ख़ुदा है नहीं ।
पर ख़ुदा नारकीय गहराइयों से
निकाल लाया बाहर उसे
थरथराने लगते हैं पहाड़ भी जिसके सामने ।
और हुक़्म दिया मुझे --
ले, कर प्यार प्यार अब इसे ।
आसमान के नीचे ढलान पर
पागलों की तरह चिल्लाता चिल्लाता रहा दुखी इन्सान ।
ख़ुदा पोंछता है हथेलियाँ ।
सोचता है वह --
उसे ही तो आया था ख़याल
अब यदि चुपके से पहुँच जाऊँ
महकने लगेंगे ऊनी कम्बल
धुआँ उठने लगेगा शैतान के माँस का ।
ऐसा नहीं किया मैंने
बल्कि थरथराता रहा गुस्से गुस्से में सुबह तककि तुम्हें ले गए प्यार प्यार करने के लिए
मैं बस खरोंचता रह गया चीख़ें कविताओं में ।
ख़राब होने लगा मेरा दिमाग़ ।
मरे हुए दिल की गर्दन ।
मुझे ज़रूरत नहीं अब तेरी ।तेरी।
कुछ फ़र्क नहीं पड़ने का,
मालूम है मुझे
दम तोड़ दूँगा कुछ ही क्षणों में ।में।
ओ ख़ुदा,
मुझे परखने कि लिए
दिन-ब-दिन बढ़ती यह तकलीफ़
तो पहन न्यायाधीशों न्यायाधीशों का पहरावा ।पहरावा।मेरे आने का तू इन्तज़ार करना !
मैं आ जाऊँगा ठीक वक़्त पर
एक भी दिन की देर किए बिना ।बिना।सुनो, ओ उच्चतम अन्वेषणाधिकारीउच्चतम अन्वेषणाधिकारी
बन्द कर लूँगा मुँह।
कटे होठों से निकलने न दूँगा एक भी चीख़ ।
बाँध दो मुझे घोड़े की पूँछ की तरह पुच्छल पुच्छल तारे से,
और निकाल फेंकों
अपनी दाँतों की तरह ।तरह।
या
जब मेरी आत्मा आत्मा छोड़ दे यह शरीरऔर हाज़िर हो जाए तुम्हारे तुम्हारे दरबार में,
नाराज़ तुम
फाँसी के फन्दे की तरह
झुलाना आकाश-गंगा
और झकझोर डालना
मुझ अपराधी को ।को।
चाहो तो टुकड़े-टुकड़े कर डालना मेरे
ओ ख़ुदा,
मैं स्वयं स्वयं पोंछूँगा तेरे हाथ ।
सुन इतनी-सी बात
ले जा मेरे पास से इस औरत को
पाँव के पंखों से लाँघता कोसों लम्बी सड़कें
कहाँ जा पाऊँगा मैं यह नरक छोड़ !
किस दिव्य दिव्य हाफ्मान कीअभिशप्त अभिशप्त तुम आई कल्पनाओं कल्पनाओं में ?
(2)
धुएँ के बीच भूल गया अपना रंग,
और बादल हैं जैसे फटीचर शरणार्थी
मैं उदित हूँगा अपने अन्तिम प्यार प्यार में चमकता हुआ
क्षय रोगी के गालों की लाली की तरह ।
ढँक दूँगा खुशियों से
उन लोगों की भीड़ के शोर को
जो भूल गए हैं स्वाद स्वाद अपने घर और आराम का ।
सुनो, लोगो,
क्षीण नहीं पड़ेंगे प्रेम के शब्द ।
प्रिय जर्मन लोगों,
मुझे मालूम है -- तुम्हारे तुम्हारे होठों पर
ग्रेटखन है गोयटे की
संगीन पर मुस्कराते मुस्कराते हुए
मरता है फ़्राँसीसी ।
घायल बेहोश यानचालक के होठों पर ।
ओ त्रावियाता
याद आता है चुम्बन में डूबा तुम्हारा तुम्हारा चेहरा ।मुझे मतलब नहीं उस गुलाबी गोश्त गोश्त से
नोंचती आ रही हैं जिसे शताब्दियाँ ।
आज लेट जाओ नए पाँवों के पास ।
ओ सुर्ख़ी किए लाल गालों वाली
गा रहा हूँ मैं आज तुम्हें तुम्हें ।
सम्भव है जब दाढ़ी पर सफ़ेद रंग फेरेंगी शताब्दियाँ
और एक शहर से दूसरे शहर भगाया जाता हुआ
मैं ।
ले जाएँगे समुद्रपार तुम्हेंतुम्हें
रात की खोह में छुपी होगी तुम ।
लन्दन की धुन्ध चीरते हुए
फैलाऊँगा मैं कारवाँ
जहाँ पहरा दे रहे होंगे शेर,
सहारा की तरह
रख दूँगा अपने दहकते गाल ।
होठों पर बिठाए मुस्कानमुस्कानतुम देखती हो --—
कितना हैं सुन्दर वृषयोद्धा ।
और मैं ईर्ष्या ईर्ष्या को बैल की आँख की तरह
निकला फेंक दूँगा दर्शक-दीर्घा पर ।
घसीट लाओगी पुल तक अपने भुलक्कड़ भुलक्कड़ कदम ।सोचोगी --— कितना अच्छा अच्छा है नीचे ।
यह मैं दूँगा सीन की तरह
पुल के नीचे बहता हुआ ।
पुकारूँगा, हँस दूँगा, सड़े दाँत दिखाते हुए ।
किसी दूसरे के साथ
तुम लगा दोगी आग
यह मैं हूँगा चाँद की तरह तरसाता हुआ ।
मैं मिट जाऊँगा मुकुट
या सेंट साध्वी हेलेन की तरह ।
ज़िन्दगी के तूफ़ान पर लगाम लगाए
मैं हूँ बराबरी का उम्मीदवारउम्मीदवारक़ैद के लिए या ब्रम्हाण्ड ब्रह्माण्ड के सम्राट पद के लिए ।
सम्राट होना
लिखा है मेरे भाग्य भाग्य में --—
मैं हुक़्म दूँगा प्रजा को
सोने के सिक्कों सिक्कों पर तुम्हारा तुम्हारा मुखड़ा कुरेदने का ।
और वहाँ
जहाँ टूण्ड्रा की तरह फीकी पड़ जाती है दुनिया,
जहाँ उत्तरी उत्तरी हवाओं सेचलता है नदियों का व्यापार --—
हाथों पर खरोंचूँगा लिली का नाम
और चूमूँगा उन्हें उन्हें कारगार के अन्धकार में ।
सुनों लोगो,
सम्भव है यह
क्षयरोगी के गालों की सुर्खी की तरह
चमक उठा हो इस दुनिया में अन्तिम प्यार प्यार ।
(3)
भूल जाऊँगा मैं -- साल, दिन, तारीख़,
बन्द कर दूँगा स्वयं को अकेला काग़ज़ के पन्ने पन्ने के साथ,दिखाओ अपने करिश्मेकरिश्मे, ओ अमानवीय जादू,यातनाओं से आलोकित शब्दों शब्दों के ।
आज प्रवेश ही किया था मैंने
कि महसूस हुआ
सब कुछ ठीक नहीं है इस घर में ।
तुम कुछ छिपा रही थी अपने रेशमी वस्त्रों वस्त्रों में,
फैल रही थी ख़ुशबू हवा में धूप की ।
'ख़ुश हो क्याक्या? 'उत्तर उत्तर में ठण्डा 'बहुत' ।
'भय ने तोड़ दी है विवेक की बाड़ ।
मैं लगा रहा हूँ निराशाओं के ढेर ।
सुनो, तुम छिपा नहीं सकोगी यह लाश,
कुछ भी हो
मर गई, मर गई, मर गई ।
नहीं, जवाब दो !
कैसे जाऊँगा मैं वापिस इस तरह ?
दो क़ब्रों के गढ़ों की तरह
खुद आई हैं आँखें तुम्हारे तुम्हारे चेहरे पर ।
गहरी होती जा रही है क़ब्रें ।
दिखाई नहीं देता कोई तला ।
रस्सियों की तरह टाँग दिया है मैंने अपना हृदय,
मैं झूल रहा हूँ उन पर
मालूम है मुझे
मेरे हृदय में
कोई फ़र्क नहीं पड़ेगा
अगर पेरिस के फ़ैशनेबल कपड़ों के बजाए
प्राचीन पैगम्बर की तरह
हज़ारों राहों से ले जाऊॅंगा अपना प्यार ।प्यार।
जिस मुकुट को बनने में लगे हैं हज़ारों वर्ष
इन्द्रधनुष की तरह अंकित है उसमें मेरी पीड़ा के शब्द ।शब्द।
जिस तरह वज़न उठाने के खेल में
पिर की जीत हासिल की हाथियों ने,
प्रतिभाशाली व्यक्ति व्यक्ति की तरहमैंने क़दम-ताल किया है तुम्हारे तुम्हारे दिमाग़ों पर ।पर।लेकिन व्यर्थ व्यर्थ है यह सबतुम्हें तुम्हें तो तोड़ नहीं पाऊॅंगा मैं ।मैं।
ख़ुश हो लो,
हाँ, ख़ुश हो लो,
तुमने कर डाला है अन्त ।अन्त।
अब दुख हो रहा है इतना
कि बस जा सकूँ अगर नहर तक
पूरा सिर दे डालूँगा पानी में ।में।तुमने दिए होठ ।होंठ।कितने भद्दे ढंग से पेश आती हो तुम अपने होठों होंठों से --— छुआ नहीं उन्हें उन्हें कि ठण्डा पड़ जाता हूँ मैंजैसे कि तुम्हें तुम्हें नहींचूम रहा होऊँ मंदिर की ठण्डी चट्टानों को ।को।
खड़ाक खुले किवाड़ ।किवाड़।
उसने किया प्रवेश,
सड़कों की ख़ुशी से भीगा हुआ मैं
विलाप में टूट गया दो हिस्सों में ।हिस्सों में।
मैं चिल्लाया चिल्लाया उस पर ।पर।'ठीक है चला जाऊँगा ।जाऊँगा।
तेरी जीत हुई,
चीथड़े पहना उसे !कोमल पंखों जैसे जिस्म जिस्म पर भर गई है रेशम की चर्बी ।
सावधान, कहीं उड़ न जाए तेरी बीवी
बाँध दे उसके गले में हीरों के हार ।हार।'उफ यह रात ।रात।स्वयं स्वयं ही कसता गया और अधिक निराशाओं को ।को।
थरथराने लगा है कमरे का थोबड़ा
मेरे हँसने और रोने से ।से।
और पिशाच की तरह
तुम से दूर ले जाया गया चेहरा उठा ।उठा।
उसके गालों पर आँखों की तरह चमक उठीं तुम ।
किसी नये ब्यालिक ब्यालिक की कल्पनाओं कल्पनाओं में
आई हो जैसे यहूदी सिओना-साम्राज्ञी।
टेक दिए घुटने यातनाओं के आगे ।
सम्राट अल्बेर्तअल्बेर्त
सारा शहर भेंट कर
उपहारों से लदे जन्मजन्म-दिन की तरह खड़ा है मेरे साथ ।साथ।
सोना हो जाओ धूप, फूल और घास में
बहार हो जाओ, ओ सब तत्त्वों के जीवन ।जीवन।
मैं चाहता हूँ एक ही नशा
कविताओं को पीते रहने का ।का।
ओ प्रिये,
तुम तो चुरा चुकी हो हृदय
हर चीज़ से वंचित कर उसे,
बहुत दुख दे रही हो तुम मुझे ।मुझे।स्वीकार स्वीकार करो मेरा उपहार ।उपहार।इससे अधिक, सम्भव है, सोच न पाऊँ कुछ और ।और।
आज की तारीख़ पर फेरी त्योहारों त्योहारों के रंग ।रंग।दिखाओ, सूली से अपना करिश्माकरिश्मा, ओ जादू,देखो --— शब्दों शब्दों की कीलों से
काग़ज़ पर ठुका पड़ा हूँ मैं ।
'''मूल रूसी से अनुवाद : वरयाम सिंह'''
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