* [[सुबह चांदनी कीरहस्यमयी परतों को दरकातीसुबह हो रही हैजगोऔर पांवों में पहन लोधूल मिट्टी ओसऔर दौड़ोदेखो-स्मृतियों मेंकोई हरसिंगार अब भी हरा होगापूरी रात जग कर थक गया होगासंभालो उसे-उसकी गंध को संभालोजगोकि कुत्ते सो रहे हैं अभीऔर पक्षी खोल रहे हैंदिशाओं के द्वारजगो और बच्चों के स्वप्नों मेंप्रवेश कर जाओ।/ कुमार मुकुल]]