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कविता की तलाश / रामनरेश पाठक

7 bytes removed, 16:58, 27 नवम्बर 2017
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मैं काली-भूरी चट्टानों और घने जंगलों वाले
पहाड़ों के पास गया और एक कविता मांगीमाँगी
पहाड़ों ने कहा--
जब से आदमी ने मेरे हृदय को टुकड़े-टुकड़े किया और
उन टुकड़ों से अपने महल बनाए, सजाए
रंग-बिरंगे महल---लीलाओं, मंत्रणाओं, यात्राओं यंत्रणाओं के महल
तुरंत ढह जाने वाले पुल और
बह ढह जाने वाली सड़कें बनायीं
इन्होंने कहा--
हमारी विवशता है, हम तुम्हें या अगली सदी को कुछ नहीं दे सकते
सिवा दैन्य, जड़ता, शून्य के
मैं तब से कविता की तलाश कर रहा हूं, थक गया हूं
और हम कविता माँगने वालों से कहता हूँ--
मेरी विवशता है
मैं तुम्हें या अगली सदी को
संगीत नहीं दे सकता और
चित्र भी नहीं
सिवा आदिम जड़ता, महाविनाश, असंवेदना, काल कूट लता
और बर्बरता के
</poem>
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