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10:19, 30 नवम्बर 2017 {{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
अकेला हूं मैं
जैसे
अकेले हैं तारे
सारे के सारे
टिमटिमाते हें अकेले
और टूट जाते हैं ...
अकेले हैं वे
शिखरों को छूती सभ्यता
अकेली है जैसे
अकेला है वह
भरे हुए घर में
मोमबत्ती की लौ की ओर
बढता बच्चा
अकेला है जैसे ...
</poem>