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चोर-चपाटी, गुण्डा-सुण्डा अब तो जन-गण-मन गाते हैं
सपने में तिरबेनी काका पैसा-पैसा चिल्लाते हैं.....
कूकर के दो आगे कूकर
आगे कूकर, पीछे कूकर
जनता पूछे — कितने कूकर
लोकतन्त्र कुकराता जाए,दुरदुर दुम दुबकाता जाए, 
दिल्ली की बिल्ली के दम पर शोहदे मालपुआ खाते हैं
सपने में तिरबेनी काका पैसा-पैसा चिल्लाते हैं....
बिना मौत अभिमन्यु मर रहे
गान्धारी धृतराष्ट्र के लिए
दुर्योधन की नब्ज़ टो रही,
 
कौरव हथियारों की धुन पर जँगल में मँगल गाते हैं,
सपने में तिरबेनी काका पैसा-पैसा चिल्लाते हैं.....
</poem>
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