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{{KKCatKavita}}
<poem>हे मेरे चिर सुन्दर-अपने!<br><br>
भेज रही हूँ श्वासें क्षण क्षण,<br>सुभग मिटा देंगी पथ से यह तेरे मृदु चरणों का अंकन !<br>खोज न पाऊँगी, निर्भय<br>आओ जाओ बन चंचल सपने!<br><br>
गीले अंचल में धोया सा-<br>राग लिए, मन खोज रहा कोलाहल में खोया खोया सा!<br>मोम-हृदय जल के कण ले<br>मचला है अंगारों में तपने!<br><br>
नुपुर-बन्धन में लघु मृदु पग,<br>आदि अन्त के छोर मिलाकर वृत्त बन गया है मेरा मग!<br>पाया कुछ पद-निक्षेपों में<br>मधु सा मेरी साध मधुप ने!<br><br>
यह प्रतिपल तरणी बन आते,<br>पार, कहीं होता तो यह दृग अगम समय सागर तर जाते!<br>अन्तहीन चिर विरहमाप से<br>आज चला लघु जीवन नपने!<br><br/poem>