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Kavita Kosh से
सुनने जैसी तरलताओं में
अंकन की दृश्यता का गीत है
तुम हो.........
जब कहीं छूट जाएँ शब्द
केवल इतना याद रखना
कि समवेत स्वर में कहा है
प्रेम हमने .......
तुम्हारे दीर्घ में वितान पा रहा है
मेरा ह्रस्व ......!!!</poem>