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पीपल की होली / कुमार मुकुल

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|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्‍यता और जीवन / कुमार मुकुल
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<poem>
यूकलिप्‍टस के पड़ोसी पीपल ने
अबके होली में वो रंग जमाया
कि उसके सारे साथी दंग रह गए
सहस्‍त्रबाहु सी भुजाओं से
छिड़क रहा था वह सुग्‍गापंखी रंग
सुनहली आभा से दिप रहा था अंग-अंग उसका
अतिथि तोता-मैना और काली कोयलिया
सब लूट रहे थे महाभोज का आनंद
परसने का अंदाज भी था नया
हर शाखा पर पुष्‍ट पकवान थे बफेडिनर की तरह
बस खाने का ढ़ंग था हिन्‍दुस्‍तानी प्‍योर
चोंच के आगे क्‍या चम्‍मच का चलता जोर
भोजनोपरांत अतिथियों ने गाया समूहगान
मस्‍ती में डूब गया सारा जहान
पता ही ना चला कैसे बीता दिन
चांदनी से कब चह-चहा गया आसमान।
</poem>
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