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{{KKRachna
|रचनाकार=दीपक शर्मा 'दीप'
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
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<poem>
सच्चों का तो सादा चेह्रा प्यारा लगता है
झूटों की ही आँखों पे मस्कारा लगता है
बदमाशी में उतना ही वो अव्वल होता है
चेह्रे से जो,जितना ही बेचारा लगता है
अच्छे इंसाँ होने को तो हो जाएँ लेकिन
अच्छा इंसाँ लोगों को आवारा लगता है
टूटा तारा देख, फ़फ़क-कर रोने लगता है
दुनिया में वो सबसे ज़्यादा हारा लगता है
पहले उसने हमको मारा हमने मारा तब
अब्बू को तो सारा दोष हमारा लगता है
सर से पा तक तेरी हालत मेरे जैसी 'दीप'
तू भी, मेरी तरहा, मारा-मारा लगता है
</poem>
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|संग्रह=
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सच्चों का तो सादा चेह्रा प्यारा लगता है
झूटों की ही आँखों पे मस्कारा लगता है
बदमाशी में उतना ही वो अव्वल होता है
चेह्रे से जो,जितना ही बेचारा लगता है
अच्छे इंसाँ होने को तो हो जाएँ लेकिन
अच्छा इंसाँ लोगों को आवारा लगता है
टूटा तारा देख, फ़फ़क-कर रोने लगता है
दुनिया में वो सबसे ज़्यादा हारा लगता है
पहले उसने हमको मारा हमने मारा तब
अब्बू को तो सारा दोष हमारा लगता है
सर से पा तक तेरी हालत मेरे जैसी 'दीप'
तू भी, मेरी तरहा, मारा-मारा लगता है
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