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05:21, 10 जनवरी 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=सभ्यता और जीवन / कुमार मुकुल
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avita}}
<poem>
कितनी भयानक होती है
कविता की आत्महत्या
मौतें होती हैं
जैसे जलती भट्टी में कुछ कोयले काले पड़ जाएं
पर कविता की मौत
मानो भट्टी ठंडी पड़ गई हो
आग बुझ गई हो
कितना खतरनाक है आग का बुझ जाना
आग जिसे जलाया था
पुरखों ने पत्थर घिस घिसकर
पीढ़ियों ने जिसे जलाए रखा श्रम से जतन से।
''गोरख पांडेय के प्रति''
</poem>