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मन से मनको लिख रही हूँ, {{KKGlobal}}पाती एक अजानी प्रियतम !{{KKRachnaपाती मेँ प्रेम - कहानी !|रचनाकार=लावण्या शाह}}
तुम भी हामी भरते जानामन से मनको लिख रही हूँ, <br>सुनते सुनते बानी ..पाती एक अजानी प्रियतम !<br>फिर कह रही पाती मेँ प्रेम - कहानी !<br><br>
कहुँ, सुनाऊँ, तुमको प्रियतमतुम भी हामी भरते जाना,<br>था राजा या रानी ?सुनते सुनते बानी ..<br>सुनोगे क्या ये फिर कह रही कहानी ?!<br><br>
सुनोकहुँ, एक थी रानी बडी निर्मम !सुनाऊँ, तुमको प्रियतम,<br>पर थी वह बडी ही सुँदर !था राजा या रानी ?<br>ज्यूँ बन उपवन की तितली !सुनोगे क्या ये कहानी ?<br><br>
गर्वीली, मदमातीसुनो, एक थी रानी बडी हठीली निर्मम !<br>एक था राजा, बडा भोला नादानरखता सब जीवोँ पर प्रेम समान थी वह बडी ही सुँदर !<br>बडा बलशाली, चतुर, सुजान ज्यूँ बन उपवन की तितली !<br><br>
सुन रहे हो तो हामी भरना गर्वीली, मदमाती, बडी हठीली !<br>एक था राजा, बडा भोला नादान<br>रखता सब जीवोँ पर प्रेम समान !<br>अब आगे सुनो कहानी बडा बलशाली, चतुर, सुजान !<br><br>
भोर भए , उगता जब रवि था,सुन रहे हो तो हामी भरना <br>राजा निकल पडता था सुबही को,साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"सुनो, अब आगे सुनो, ये कहानी !<br><br>
छोड गाँव की सीमा को वहभोर भए ,जँगल पार घनेरे कर केउगता जब रवि था,<br>आयाराजा निकल पडता था सुबही को, जहाँ रहती थी रानी !<br>साथ घोडी लिये वह "मस्तानी"<br>अब आगे सुनो, सुनो, ये कहानी ..!<br><br>
रानी रोज किया करती थीगौरी - व्रत छोड गाँव की पूजासीमा को वह,<br>नियम न था कोई दूजा ~जँगल पार घनेरे कर के,<br>आया, जहाँ रहती थी रानी !<br>अब आगे सुनो, कहानी ..<br><br>
छिप मँदीर की दीवारोँ से,रानी रोज किया करती थी<br>देखी राजा ने रानी गौरी -मन करने लगा मनमानी !किसी तरह पाऊँ मैँ इसकोव्रत की पूजा,<br>हठ राजा ने ये ठानी !वह भी तो नियम न था अभिमानी !कोई दूजा ~<br><br>
पलक झपकते रानी लौटीछिप मँदीर की दीवारोँ से,<br>लौट चले सखीयोँ के दल मची देखी राजा के दिल मेँ हलचल ने रानी -<br>मन करने लगा मनमानी !<br>पाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेजकरकिसी तरह पाऊँ मैँ इसको,<br>हठ राजा ने देखा मीठा सपना ये ठानी !<br>दूर नहीँ होँगेँ दिनी ऐसे, हम जब होँगेँ साजन - सजनी वह भी तो था अभिमानी !<br><br>
पलक झपकते रानी ने पर अपमानित करकेलौटी,<br>ठुकराया उसका प्रस्ताव लौट चले सखीयोँ के दल <br>मची राजा के दिल मेँ हलचल !<br>क्या होपाणि - ग्रहण प्रस्ताव भेजकर<br>राजा ने देखा मीठा सपना <br>दूर नहीँ होँगेँ दिनी ऐसे, था ही हठी स्वभाव <br>हम जब होँगेँ साजन - सजनी !<br><br>
आव न देखा, ताव न देखारानी ने पर अपमानित करके,<br>राजा ने फिर धावा बोला--अब तो रानी का आसन डोला ठुकराया उसका प्रस्ताव !<br>बँदी बन रानी, तब आईँ राजा के सम्मुख गई लाईँकारा गृह मेँ भेज दीया कहक्या हो,था ही हठी स्वभाव !<br><br>
"नहीँ चाहीयेआव न देखा, मुझे गुमानी !ना होगी मेरी येताव न देखा, <br>राजा ने फिर धावा बोला--<br>अब तो रानी का आसन डोला ! "<br>बँदी बन रानी, तब आईँ <br>राजा के सम्मुख गई लाईँ<br>कारा गृह मेँ भेज दीया कह,<br>
एक वर्ष था बीत चला अब आया श्री पुरी मेँ अब उत्सव "नहीँ चाहीये, मुझे गुमानी !<br>श्री जग्गनाथ का उत्सव !रीत यही थीना होगी मेरी ये, एक दिवस को,राजा , झाडू देते थे ....मँदिर के सेवक होते थे रानी !"<br><br>
बुढा मँत्री, चतुर सयानाएक वर्ष था बीत चला अब <br>लाया खीँच रानी आया श्री पुरी मेँ अब उत्सव !<br>श्री जग्गनाथ का बाना कहा,उत्सव !<br>" महाराजरीत यही थी, ये भी हैँ प्रभु की दासीएक दिवस को,<br>राजा ,झाडू देते थे ....<br>- पर मेरी हैँ महारानी मँदिर के सेवक होते थे ! "<br><br>
बुढा मँत्री, चतुर सयाना<br>लाया खीँच रानी का बाना कहा,<br>" महाराज, ये भी हैँ प्रभु की दासी,<br>- पर मेरी हैँ महारानी ! "<br>कहो कैसी लगी कहानी ? <br><br>
सेवक राजा की ,सेविका से,<br>हुई धूमधाम से शादी--<br>फिर छमछम बरसा पानी !<br>मीत हृदय के मिले सुखारे <br>बैठे, सिँहासन, राजा ~ रानी !<br>हा! कैसी अजब कहानी !<br><br>
जो प्रभु के मँदिर जन आयेँ,<br>पायेँ नैनन की ज्योति,<br>प्रवाल - माणिक मुक्ता मोती !<br>यहाँ न हार किसी की होती !<br><br>
अब कह दो मेरे प्रियतम प्यारे,<br>कर याद मुझे कभी क्या, वहाँ,<br>हैँ आँख तुम्हारीँ रोतीँ?<br>
काश! कि, मैँ वहाँ होती !