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<Poem>
डरी–डरी आँखों में
तिरते अनगिन आँसू
इनको पोंछो
वरना जग जल जाएगा ।
उम्र तमाम
कर दी हमने
रेतीले रिश्तों के नाम ।
औरत की कथा
हर आँगन में
तुलसी चौरे–सी
सींची जाती रही व्यथा ।
स्मृति तुम्हारी-
हवा जैसे भोर की
अनछुई , कुँआरी ।
माना कि
झुलस जाएँगे हम,
फिर भी सूरज को
धरती पर लाएँगे हम ।
पलकों पे लरजते मोती
गिरने नहीं देना,
इससे बड़ा सुधा-पान नहीं होगा
इस जनम के वास्ते !
जिसने पाया,वह भरमाया
जिसने खोया,वह तो रोया