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सुख-साज / कविता भट्ट
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04:56, 31 दिसम्बर 2021
<poem>
पक्षियों के पर रँगीले
रेशम
की
के
बन्धन सजीले
हरीतिमा डाली निराली
नव किसलय, अमृत प्याली
रोक लेंगे क्या ये सब मुझे?
अभी -
अभी बीते क्षण मेंऔर
मृदु
मृदाकण में
जगी थी एक स्फूर्ति
सजी थी एक मूर्ति
वीरबाला
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