भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक कोमल लड़की / प्रज्ञा रावत

604 bytes removed, 16:33, 27 फ़रवरी 2018
कविता की उम्मीद
करना बेमानी होगा।
चुपचाप बहती नदी
 
बरसों से कल-कल
बहते-बहते थक चुकी नदी
पहाड़ की गोद में
एक दिन प्रेम भरी नींद
सोना चाहती है
 
कोई जाओ
कहो पहाड़ से कि
नदी ज़रा शर्मीली है
यूँ ही चुपचाप बहती रहेगी
जंगलों में बीचोंबीच
मन्द-मन्द तड़कती
अन्दर ही अन्दर।
</poem>
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
53,693
edits