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बारिश / कुमार मुकुल

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|संग्रह=ग्यारह सितम्बर और अन्य कविताएँ / कुमार मुकुल
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भादो की ढलती इस साँझ
 
लगातार हो रही है बारिश
 
 
हल्की
 
दीखती बमुश्किल
 
 
उसकी आवाज़ सुनने को
 
धीमा करता हूं पंखा
 
पत्तों से, छतों से आ रही हैं
 
टपकती बड़ी बूंदों की
 
टप-चट-चुट की आवाज़ें
 
छुपे पक्षी निकल रहे हैं
 
अपने भारी-भीगते पंखों से
 
कौए भरते हाँफती उड़ान
 
उधर लौट रहा मैनाओं का झुंड
 
अपेक्षाकृत तेज़ी से
 
पंखों पर जम आती बूदों को
 
झटकारता।