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मनोविनोदिनी-2 / कुमार मुकुल

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{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|अनुवादक=
|संग्रह=एक उर्सुला होती है
}}
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<poem>
यह दूसरी बार
सुन रहा था
उसे
खिलते पुष्पों से
एक वृत्त में खुलते
स्वरों के पीछे
खल खल करता
एक अन्य स्वर

यह खल खल
सुनने नहीं दे रही थी
ठीक से
कुछ और
जो कहा जा रहा था
मैं उसे सुनना चाह रहा था

एक मधुरिल स्वर
पगा हूं जिसमें मैं

उसे घोलती सी
यह स्वर लहरी
मेरे बाहर
जाने कहां
गिर रही थी।

</poem>
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