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Kavita Kosh से
विवश कुछ बोला था;
सुना, मेरा वह बोलना
आज शब्द में मौन को धँसाता हूँ,
अब न पीड़ा है न आनंद है
विस्मरण के सिन्धु में
डूबता -सा जाता हूँ,
देखूँ,
तह तक