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सुपना.. / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
फ्रायड कैवै-
सुपना है-अधूरी इंछावां रा दरसाव
मनोविग्यानियां मुजब
सुपना हुवै रंगविहूणा
साच्याणी?
रंग विहूणा सुपना
गंध विहूणा सुपना
भाव विहूणा सुपना
तो क्यूं सोरम आवै
नींद में ई चूल्है माथै सिकती रोटी री
कीकर जागै चेतना!
हड़बड़ा’र किणी अजोगी चींत सूं
क्यूं गालां माथै दीसै
सूक्योड़ै लूण रा धारा
सुपना होवता रंगविहूणा
तो कुण देखतो
आजादी रा हरियल सुपना?
क्यूं दिखता कळमस रा अैनाण
रोस्योड़ी आवाजां री घर-घर
सुपना रा हुवै रंग
जद ई दीसै
मिनखाचारै री फंफेज्योड़ी रूह
नागी काया रो गुलाबी मांस
रगां में बैंवतो लीलो अभरोसो
बैंगणी फेफड़ा में भरती मिनखदेह री बास
कळपीजतो लोहीझ्याण
अेक हरियल सुपनो
सुपनां रा हुवै रंग
जणै ई तो हुवै बिदरंग।
</poem>
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