Changes

{{KKCatKavita}}
<poem>
'''1.'''
 
नदी हूँ मैं
बड़े-बड़े विशाल पत्थरों से टकराकर
सख़्त चट्टानों पर गिरती हूँ
 
ख़ूब तेज़ बहती हवाएँ
मेरे लिए रास्ता बनाती हैं
मेरे किनारों पर खड़े पेड़
बादलों से बारिश उतारते हैं
 
मैं नदी हूँ
अल्हड़ बहती हूँ कभी शान्त
तेज़ कभी
प्रबल और प्रचण्ड गति से
तो कभी धीमे-धीमे बहती हूँ
हर समय मुझमें झाँकता है
एक पुल
अपनी मेहराबों के साथ।
 
'''2.'''
Delete, Mover, Protect, Reupload, Uploader
54,214
edits