Changes

मन ना रंगाये / कुमार मुकुल

2,571 bytes added, 05:23, 13 अप्रैल 2018
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार मुकुल |संग्रह= }} {{KKCatK​​ avita}} <poem>...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कुमार मुकुल
|संग्रह=
}}
{{KKCatK​​
avita}}
<poem>
हरी दीवारों को
भगवा कर रहे तुम

क्‍या अब दीवारें
बांटने की जगह
जाति-बिरादरी
और तमाम फिरकों को
एक करने का काम करने लगेंगी

त‍ब इस अछोर हरियाली
का क्‍या करोगे तुम
जो मौसम की एक थाप पर
चतुर्दिक अपनी विजय पताका
लहराने लगते हैं

हल्‍की हवा में झूमते पत्‍ते
क्‍या पागल बनाते हैं तुम्‍हें
क्‍या बस धूसर शमशानी रंग ही
पसंद हैं तुम्‍हें

अंबेडकर को तुमने
पहना दिये भगवा वस्‍त्र
कल को क्‍या
संस्‍कृति का मुंडन कर
शमशान में बिठाने का इरादा है

रंगों के आधार पर कोई निष्‍कर्ष
कैसे निकाल सकते हो तुम
तब तो बिष्‍ठा का रंग तुम्‍हे भायेगा
क्‍योंक‍ि वह तुम्‍हारे प्रिय रंग के
निकट का पड़ता है

गोबर तो पहले से पवित्र है
क्‍या बिष्‍ठा को भी
पवित्रता का तमगा प्रदान करोगे
जैसे बलात्‍कारोपितों को
संत का मुखौटा प्रदान कर
हताशाराम की आशाएं जगा रहे

जबकि हरियाली को चारो सिम्‍त
फैलाने वाले अन्‍नदाता
आत्‍महत्‍या पत्र पर
तुम्‍हारा नाम दर्ज कर
राम जी के पास जा रहे

कहीं भगवा की जगह
हरे को फैलाना
उनका अपराध तो नहीं है
क्‍या तुम्‍हारा मानस
पीलियाग्रस्‍त है।

</poem>
765
edits