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गुँथा मिलन कब / कविता भट्ट

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'''क्षीण प्रतीक्षा के धागे ,अर्थहीन आशा के मोती ।गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से, टूटी अश्रुमाल पिरोती ॥'''
शीतनिशा में हर पात झरा है
पीर का बिरवा भी हुआ हरा है ।
नवपुष्प खिले, भौरों के गुंजन
सजेगा तुम संग विकसित यौवन॥
'''पथ में प्रिय पुष्प बिछाते, पर विरहन काँटों में सोती।
गुँथा मिलन कब हृदय सुचि से,टूटी अश्रुमाल पिरोती॥
'''
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