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तल्खियों वाले मौसम
हैं,बरसात नहीं
 
आँख मिचौली
करते करते
थोड़ा दर्द समझती
ऐसी रात नहीं
 
शून्य क्षितिज के
अर्थ लगाते
सूखे खेतों से कहती है
अब खैरात नहीं
 
दीवारों के
कान हो गए
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