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भूख चली पीहर / अवनीश त्रिपाठी
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18:36, 6 मई 2018
तल्खियों वाले मौसम
हैं,बरसात नहीं
आँख मिचौली
करते करते
थोड़ा दर्द समझती
ऐसी रात नहीं
शून्य क्षितिज के
अर्थ लगाते
सूखे खेतों से कहती है
अब खैरात नहीं
दीवारों के
कान हो गए
Rahul Shivay
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