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उद्गीत / कविता भट्ट

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तरु जूझे आँधी से
अब भी शेष
14
पाहन हूँ मैं
तुम हीरा कहते
प्रेम तुम्हारा
15
तुम हो शिल्पी
प्रतिमा बना डाली
मैं पत्थर थी
 
<poem>
-०-