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वीरेन डंगवाल / परिचय

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{{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=अशोक कुमार शुक्ला|संग्रह=}}'''वीरेन डंगवाल''' (५ अगस्त १९४७ - २८ सितंबर २०१५) [[साहित्य अकादमी]] द्वारा पुरस्कृत हिन्दी कवि थे। उनका जन्म कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, उत्तराखंड में हुआ। उनकी माँ एक मिलनसार धर्मपरायण गृहणी थीं और पिता स्वर्गीय रघुनन्दन प्रसाद डंगवाल प्रदेश सरकार में कमिश्नरी के प्रथम श्रेणी अधिकारी। उनकी रूचि कविताओं कहानियों दोनों में रही है। उन्होंने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में [[इलाहाबाद विश्वविद्यालय]] से शिक्षा प्राप्त की। उन्होंने १९६८ में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एम॰ए॰ और तत्पश्चात डी॰फिल की डिग्रियाँ प्राप्त की।
[[वीरेन डंगवाल]] (५ अगस्त १९४७)[[साहित्य अकादमी पुरस्कार| साहित्य अकादमी]] द्वारा पुरस्कृत १९७१ से बरेली कॉलेज में हिन्दी कवि हैं। ==जीवन परिचय==उनका जन्म कीर्तिनगर, टेहरी गढ़वाल, [[उत्तराखंड]] के अध्यापक रहे। साथ ही शौकिया पत्रकार भी। पत्नी रीता भी शिक्षक। स्थाई रूप से बरेली के निवासी। अंतिम दिनों में हुआ। उनकी माँ एक मिलनसार धर्मपरायण गृहणी थीं स्वास्थ्य संबंधी कारणों से दिल्ली में रहना पड़ा और पिता स्वर्गीय रघुनन्दन प्रसाद डंगवाल प्रदेश सरकार २८ सितम्बर २०१५ को ६८ साल की उम्र में कमिश्नरी के प्रथम श्रेणी अधिकारी। उनकी रूचि कविताओं कहानियों दोनों में रही है। उन्होंने मुजफ्फरनगर, सहारनपुर, कानपुर, बरेली, नैनीताल और अन्त में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से शिक्षा प्राप्त की। देहांत हुआ।
पेशे से हिन्दी के प्रोफ़ेसर। शौक से बेइंतहा कामयाब पत्रकार। आत्मा से कवि। बुनियादी तौर पर एक अच्छे- सच्चे इंसान। ==साहित्य यात्रा==बाईस साल की उम्र ६० को छू चुकी। पत्नी रीता भी शिक्षक। दोनों बरेली में रहते हैं। वीरेन १९७१ से बरेली कॉलेज उन्होनें पहली रचना, एक कविता, लिखी और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०-७५ के बीच ही हिन्दी पढाते हैं। उन्हें २००४ जगत में उनके खासी शोहरत हासिल कर ली थी। विश्व-कविता संग्रह [[दुष्चक्र से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में सृष्टा / वीरेन डंगवाल| दुष्चक्र कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताओं का भाषान्तर बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया जैसी भाषाओं में सृष्टा]] के लिए साहित्य अकादमी द्वारा भी पुरस्कृत किया गया प्रकाशित हुआ है।[http://rachanakar.blogspot.com/2007/05/ वीरेन डंगवाल की छह कविताएँ]
==शैक्षिक एवं सृजनात्मक कार्य==वीरेन डंगवाल का पहला कविता संग्रह ४३ वर्ष की उम्र में आया। ''इसी दुनिया में'' नामक इस संकलन को रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२) तथा श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९३) से नवाज़ा गया। दूसरा संकलन 'दुष्चक्र में सृष्टा' २००२ में आया और इसी वर्ष उन्हें 'शमशेर सम्मान' भी दिया गया। दूसरे ही संकलन के लिए उन्हें २००४ का [[साहित्य अकादमी पुरस्कार]] भी दिया गया। उन्हें हिन्दी कविता की नई पीढ़ी के सबसे चहेते और आदर्श कवियों में माना जाता है। समालोचकों के अनुसार, उनमें नागार्जुन और त्रिलोचन का-सा विरल लोकतत्व, निराला का सजग फक्कड़पन और मुक्तिबोध की बेचैनी और बौद्धिकता एक साथ मौजूद है।
बाईस साल की उम्र में उन्होनें पहली रचना, ==पत्रकारिता==वे शौकिया तैर पर पत्रकारिता से भी जुड़े रहे थे और एक कविता लिखी लंबे अरसे तक [[अमर उजाला]] के ग्रुप सलाहकार और फिर देश की तमाम स्तरीय साहित्यिक पत्र पत्रिकाओं में लगातार छपते रहे। उन्होनें १९७०- ७५ बरेली के बीच ही हिन्दी जगत स्थानीय संपादक रहे। वर्ष २००९ में खासी शोहरत हासिल कर ली थी। एक विवाद के चलते उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था।
विश्व-कविता से उन्होंने पाब्लो नेरूदा, बर्टोल्ट ब्रेख्त, वास्को पोपा, मीरोस्लाव होलुब, तदेऊश रोजेविच और नाज़िम हिकमत के अपनी विशिष्ट शैली में कुछ दुर्लभ अनुवाद भी किए हैं। उनकी ख़ुद की कविताएँ बाँग्ला, मराठी, पंजाबी, अंग्रेज़ी, मलयालम और उड़िया में छपी है। वीरेन डंगवाल का पहला कविता संग्रह ४३ वर्ष की उम्र में आया। [[इसी दुनिया में / वीरेन डंगवाल| इसी दुनिया में]] नामक इस संकलन को रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२) तथा श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९३) से नवाज़ा गया। ==प्रमुख रचनायें==
दूसरा संकलन [[दुष्चक्र *''इसी दुनिया में सृष्टा / वीरेन डंगवाल| ''*''दुष्चक्र में सृष्टा]] २००२ में आया और इसी वर्ष उन्हें स्रष्टा'शमशेर सम्मान' भी दिया गया। दूसरे ही संकलन के लिए उन्हें २००४ का [[*''कवि ने कहा''*''स्याही ताल'' ==पुरस्कार और सम्मान==* साहित्य अकादमी पुरस्कार]] भी दिया गया। (२००४)समकालीन कविता के पाठकों को वीरेन डंगवाल की कविताओं का बेसब्री से इन्तज़ार रहता है। वे हिन्दी कविता की नई पीढ़ी के सबसे चहेते और आदर्श कवि हैं। उनमें [[नागार्जुन]] और त्रिलोचन का-सा विरल लोकतत्व, [[निराला]] का सजग फक्कड़पन और मुक्तिबोध की बेचैनी और बौद्धिकता एक साथ मौजूद है। [http://virendradangwal.blogspot.com/2008/11/blog-post.html वीरेनदा के बारे में]* शमशेर सम्मान (२००२)* श्रीकान्त वर्मा स्मृति पुरस्कार (१९९३)* रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार (१९९२)