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Kavita Kosh से
पंखुरियाँ न सही
आँखें भेजतीं
पीड़ामिश्रित-आशा
मन के उद्वेग
बन्द होते झरोखे
कभी खुलते
झाँकती रश्मियों के
हाथ रचते
खुशबू से महके
'''प्रेमग्रंथ के पन्ने...।'''