भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
Changes
Kavita Kosh से
'''री देबी चाहू देखणी, एक बर तेरी शान मैं ।। टेक ।।'''
यज्ञ-हवनए हवन तप-अराधना, करते वर्ष बितगे अठारा,
प्रजा न्याकारी राजा, गऊ ब्रहामण का प्यारा,
म्हारा बेड़या परा लगाईए, राजन् मांग तनै जो चाहिए,