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|रचनाकार= फ़दवा तूकान|अनुवादक=अनिल जनविजय|संग्रह=फ़िलीस्तीनी कविताएँ / फ़दवा तूकान
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{{KKCatKavita}}<poem>जब खूंखार खूँखार तूफ़ान ने 
सब तहस-नहस कर दिया था
 
काले समुद्र ने कै की थी
 
बर्बर समुद्र-तट से
 
सुन्दर हरित मैदान के ऊपर
 हवा में गरज़ा गरजा था पिशाच 
पेड़ गिरने लगे थे
 
पेड़ गिर गए
 
पेड़ों के भव्य तने
 
तूफ़ान से ध्वस्त हो गए
 
और पेड़ निर्जीव हो गए
 
पेड़ ! पेड़ !
 
क्या तुम मर सकते हो?
 
सुर्ख़ नदियों ने पूछा
 
प्यारे पेड़
 
तुम्हारी जड़ें लबालब भरी हुई हैं
 
युवा अवयवों से तैयार गहरी लाल शराब से
 
प्यारे पेड़
 
अरबी जड़ें कभी नहीं सूखतीं
 
वे फैलती हैं नितल गहराइयों में
 
चट्टानों के पार तक धरती के भीतर
 अपना रास्ता ढूंढती ढूँढ़ती हुईं 
पेड़ ! पेड़ !
 
तुम उगोगे सूर्य के संरक्षण में
 फूटेंगे कल्ले ताज़े ताज़ा और सब्ज़ हरे 
पत्तों के बीच गूँज़ेगी हँसी
 
धूप पर चढ़कर लौटेंगे पक्षी
घर की ओर, घर की ओर, घर की ओर
घर की ओर, घर की ओर, घर की ओर'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''</poem>
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