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|रचनाकार=मोईन बेस्सिसो|अनुवादक=अनिल जनविजय|संग्रह=फ़िलीस्तीनी कविताएँ / मोईन बेस्सिसो
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{{KKCatKavita}}<poem>
हवाई अड्डे पर है एक प्रसन्न कवि
 
हवाई अड्डे पर है एक प्रसन्न पाठक
 
सुरक्षित है हवाई अड्डे की ओर आने वाली सड़क
 
वहाँ कोई स्थानीय विमान नहीं है
 
और रेत का यह बोरा ही सिर्फ़ नायक नहीं है
 
यह बेरूत है
 न मरे में है और न जिये जीए में 
लेकिन अख़बारों के हर हिस्से पर बेरूत की छाया है
 
चक्की के दो पाटों के बीच फँसा
 
वह अपना अख़बार छाप रहा है
 
अपना अख़बार पढ़ रहा है वह
 
प्रसन्न कवि प्रतीक्षा कर रहा है विमान की
 
प्रसन्न पाठक इन्तज़ार में है जलयान की
 
और रेत का यह बोरा ही सिर्फ़ नायक नहीं है
 
लेकिन बेरूत वहाँ है
 
एक दीवार के पीछे जीता और मरता हुआ
 
ओ अभागे नगर !
 
एक बादल हो तुम
 
बन्दूक से छूटी एक गोली, रोटी का एक टुकड़ा
 
और एक बोतल
 
या तुम एक लंगड़ी भेड़ हो
 
फुटपाथ पर नौसैनिकों से प्यार जताती हुई
 
ख़ुदा हो जैसे तुम अब
 जंज़ीरों ज़ंजीरों में जकड़ा हुआ 
तुम न उड़ती हुई चिड़िया हो और न बम
 
दो गुटों के बीच तुम
 
एक धब्बे की तरह हो
 
हर दो वाक्यों के बीच एक अर्धविराम की तरह
 चांदमारी चाँदमारी के लिए बनी दीवार 
काम आती है विज्ञापनों के लिए भी
 
उस पर चिपके पोस्टरों पर
 
बरसती है बारिश
 
इकट्ठा हो जाता है तुम्हारा बहुरंगी जल
 
अभी भी शेष है वहाँ, उस दीवार पर
 
एक वासन्ती चिड़िया
 
तुम्हारे प्यानो की चाबियों पर बैठी हुई
 
शाम को
 
अख़बार में लिखते हैं घायल
 
सुबह सवेरे उसे पढ़ते हैं मृतक
 
प्रसन्न कवि
 
और प्रसन्न पाठक हवाई अड्डे पर हैं
 
प्रसन्न विमान परिचारिका बाँट रही है
 
पेंसिलें, उड़ान-कार्ड और समाचार-पत्र
 
दस हज़ार मीटर की ऊँचाई पर
 लिखो-- बेरूत गूँज रहा है 
दस हज़ार मीटर की ऊँचाई पर
 पढ़ो-- बेरूत डूब रहा है 
बेरूत पीछे कैसा है
 
ख़ुशी से लिखो
 
ख़ुशी से पढ़ो
बेरूत पीछे छूट गया
बेरूत पीछे छूट गया'''अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''</poem>
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