भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

कवि / महेन्द्र भटनागर

28 bytes removed, 14:21, 16 जुलाई 2008
[[Special:Contributions/122.168.206.19|122.168.206.19]] ([[User talk:122.168.206.19|Talk]]) के संपादनोंको हटाया; [[User:Pratishtha|Pratishtha]] के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किय
|संग्रह=नई चेतना / महेन्द्र भटनागर
}}
[40]
 
युग बदलेगा कवि के प्राणों के स्वर से,
प्रतिध्वनि आएगी उस स्वर की घर-घर से !
 
कवि का स्वर सामूहिक जनता का स्वर है,
उसकी वाणी आकर्षक और निडर है !
 
जिससे दृढ़-राज्य पलट जाया करते हैं,
शोषक अन्यायी भय खाया करते हैं !
 
उसके आवाहन पर, नत शोषित पीड़ित,
नूतन बल धारण कर होते एकत्रित !
 
जो आकाश हिला देते हुंकारों से
दुख-दुर्ग ढहा देते तीव्र प्रहारों से !
 
कवि के पीछे इतिहास सदा चलता है,
ज्वाला में रवि से बढ़कर कवि जलता है !
 
कवि निर्मम युग-संघर्षों में जीता है,
कवि है जो शिव से बढ़कर विष पीता है !
 
उर-उर में जो भाव-लहरियों की धड़कन,
मूक प्रतीक्षा-रत प्रिय भटकी गति बन-बन,
 
स्नेह भरा जो आँखों में माँ की निश्छल,
लहराया करता कवि के दिल में प्रतिपल !
 
खेतों में जो बिरहा गाया करता है,
या कि मिलन का गीत सुनाया करता है,
 
उसके भीतर छिपा हुआ है कवि का मन,
कवि है जो पाषाणों में भरता जीवन!
 
  
1953