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[[Category:चोका]]
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भावों की नदीप्रेम नीर से भरीछलकती थींतटों को तोड़करबना ही दियातुम्हारी ही वाणी नेप्रियात्मा को भी'''अभिशप्त अप्सरा।'''छीने थे भावकुचला अनुरागबिछाते रहेपथ में सिर्फ़ आग।तुम्हें क्या मिलाछीनकर चाँदनी!कुंठा तुम्हारीप्रसाद बन मिलीमुर्झाती गईवह रूप की कलीआज जो देखीवह उदास परीरो उठा मनप्रभु से मैं माँगता-0-सुख उसको मिले !
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