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<poem>
गुरु दयालु कृपालु, कोई सरल सत्य उपदेश करो,
चतुर शिष्य तेरा भरम मिटै, मन मे शंका पेश करो || टेक ||

इस अपार संसार सिंधु से, तिरने का क्या इलाज है ?
विश्वपति परमपिता के चरण कमल का जहाज है,
कौन बन्धन में बंधा हुआ, जिससे सब जनता नाराज है?
सब विषयो में फंसा हुआ, जो तृष्णा मन का मोहताज है,
कैसे विमुक्त जगत में हुं, मेरे मन का दूर क्लेश करो?
सकल विषयो का त्याग, शिष्य तृष्णा की यही मेश करो ||

घोर नर्क है कौन गुरु? बस चेले अपना शरीर है,
स्वर्ग का पद क्या है? जिसे तृष्णा की काटी जंजीर है,
कौन संसार हरन वाला? जो आत्मज्ञानी गम्भीर है,
मोक्ष का करण बता गुरु? जो शुद्ध आत्म शरीर है,
कौन प्रधान नर्क का? मत नारी से प्यार विशेष करो,
स्वर्ग को देने वाल क्या? मत जीव हिंसा दरवेश करो ||

इस संसार में गुरु जी कौन आनंद से सोता है ?
जो ईश्वर के रूप में शिष्य हरदम स्थित होता है,
कौन जागरण करे सदा और क्या जागरण में टोटा है,
सत्य असत्य जानने वाला त्याग नींद मल धोता है,
शत्रु कौन जगत में मुरशद हृदय ज्ञान प्रवेश करो?
कर्म इन्द्रिय ज्ञान इन्द्रिय इन का नामुद नेश करो,

सबसे दरिद्र कौन बताओ मेरे गुरु वेदाचारी?
वही दरिद्री सबसे बढ़कर आशा तृष्णा है भारी,
कौन सेठ है धनवाला जिसे मान रही जनता सारी?
वह संतोषी पुरुष जिसे आशा तृष्णा दोंनो मारी,
जीते जी है मरा कौन ? पुरुषार्थहिन हितेष करो,
अमृत क्या है कहो? निराशा मत आशा हरिकेश करो ||
</poem>
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