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|रचनाकार=राज़िक़ अंसारी
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<poem>
दिले-बीमार को सब देखने आए
जिन्हें आना था वो कब देखने आए

हिक़ारत से मुझे देखा था जिसने
उसे कहना मुझे अब देखने आए

उसे मैं भी समन्दर का लक़ब दूं
मेरे सूखे हूए लब देखने आए

मेरे टूटे हुए ख़्वाबों के टुकड़े
कोई आँखों में या रब देखने आए

बुलाया तो बहुत चीख़ों ने लेकिन
खुली अब नींद सो अब देखने आए

</poem>