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दोहा-
श्रीकृष्ण जन्म आत्म मन, नटवर नंद किशोर ।
सात द्वीप नो खण्ड की, प्रभु थारै हाथ मैं डोर ।।

कहूँ जन्म कथा भगवान की, सर्व संकट हरणे वाली ।। टेक ।।

घृतदेवा शांति उपदेवा के, बयान सुणो,
श्री देवादेव रक्षार्थी धर करके नै, ध्यान सुणो,
सहदेवा और देवकी के नाम से, कल्याण सुणो,
सात के अतिरिक्त एक दस, पत्नी और परणी,
पोरवी, रोहिणी, भद्रा, गद्रा, ईला, कौशल्या यह बरणी,
केशनी, सुदेवी कन्या, रोचना देवजीती धरणी,
रोहिणी से सात जन्मे उनके तुम नाम सुणो,
गद्ध, सारण, धुर्व, कृत, विपुल, दुरवूद, बलराम, सुणो,
देवकी के अष्टम गर्भ प्रगटे शुभ धाम सुणो,
जो माया दया निधान की, वो कभी न मरने वाली।।

श्री शुकदेव मुनि देखो परीक्षित जी से कहैं हाल,
नर लीला करी हरि संग लिए ग्वाल बाल,
कंस को पछाड़ मारे जरासंध शिशुपाल,
प्रथम यदुवंशियों में राजा भजमान हुया,
उनके पुत्र पृथ्रिक उसके विदुरथ बलवान हुया,
उनके सूरसेन सर्व राजों में प्रधान हुया,
सूरसेन देश मथुरापुरी रजधानी थी,
सूरसेन भूपति के भूपति कै मरीषा पटराणी थी,
दस पुत्र पाँच कन्या सुशीला स्याणी थी,
ना कमी द्रव संतान की, सेना रिपु डरने वाली।।

जेष्ठ पुत्र वसुदेव सत्रह पटरानी ब्याही,
देवक सुता देवकी थी उन्ही से हुई सगाई,
बड़ी धूमधाम से सज के बारात आई,
आहुक नाम एक नृप वर्षिणी जो वंश सुणो,
उग्रसेन पवन रेखा बदल गया अंश सुणो,
द्रुमलिक राक्षस से पैदा हुया कंस सुणो,
वेद विधि सहित जब देवकी का ब्याह हुया,
बालक युवा वृद्ध पुरुष नारियों मैं चाव हुया,
ढप ढोल भेर बाजै पूरी मैं उत्साह हुया,
ना कवि कह सकै जान की, गिरा वर्णन करने वाली।।

चार सौ हाथी अठारह सौ रथ जब सजा दिये,
दस सहस्र हय वेग प्रभंजन के लजा दिये,
दो सौ दासी दास वै भी दुंदुभी बजा दिये,
बारात विदा करी सब चलने को तैयार हुए,
उग्रसेन पुत्र कंस रथ में सवार हुए,
गज वाजि रथ पैदल साथ मैं अपार हुए,
मथुरापुरी गमन सकल बारात हुई,
गुरु कुन्दनलाल कहते आश्चर्य की बात हुई,
सेवक नंदलाल ऊपर राजी दुर्गे मात हुई,
करो शुद्धि मेरी जबान की, गुण उर में भरने वाली।।

दोहा-
सकल समूह जन सुन रहे, नभ वाणी कर गौर।
अरे कंस कहाँ गह रह्या, कर रथ घोड़ां की डोर।।
</poem>
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